Paddy Crop Diseases : धान में झोंका और झुलसा रोग की पहचान एवं उनसे बचाव की सम्पूर्ण जानकारी देखें ?

Paddy Crop Diseases : धान की फसल में झोंका (Rice Blast) और झुलसा (Sheath Blight Disease) मुख्य दो रोग लगते हैं। जिनका समय पर समाधान नहीं किया जाए, तो पूरी फसल चौपट भी हो सकती है। धान में लगाने वाले इन दोनों बेहद मुख्य रोग से फसल का बचाव केवल 650 रुपए प्रति एकड़ खर्च पर किया जा सकता है।

धान के उत्पादन में किसानों को बुवाई से लेकर फसल की कटाई तक के काम में काफी कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। इसी बीच देशभर के अधिकांश इलाकों में खरीफ की मुख्य फसल धान की बुवाई और रोपाई का कार्य लगभग पूरा हो चुका है।Paddy Crop Diseases:  इसके बाद किसानों द्वारा धान की फसल में देखभाल संबंधित जैसे महत्वपूर्ण कार्य किया जाना है। ऐसे में अक्सर देखा गया है कि धान की रोपाई के 30 से 35 दिनों के बाद धान के पौधों में झोंका और झुलसा नाम दो रोग लगते हैं। धान में लगने वाले यह दोनों रोग मौलिक रोग हैं, जो पाइरीकुलेरिया ओराइजी नामक कवक (फफूंद) से फैलते हैं।

धान में लगने वाले इन दोनों मुख्य रोगों को समय पर कंट्रोल नहीं किया जाता है, तो ये धान के उत्पादन को प्रभावित करते हैं। कई बार तो रोग की वजह से किसानों की पूरी-पूरी फसल तक बर्बाद हो जाती है, जिससे उन्हें मोटी आर्थिक हानि तक होती है।Paddy Crop Diseases:  ऐसे में अगर आप इन रोगों से अपनी धान की फसल को बचाना चाहते हैं, तो आप फंगीसाइड का इस्तेमाल कर सकते हैं। जिसके लिए आप को मात्र 650 रुपए प्रति एकड़ तक का खर्च वहन करना होगा। आप अपने क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र या किसी कृषि वैज्ञानिक/विशेषज्ञ से सलाह (एडवाईज) लेकर फंगीसाइड का इस्तेमाल करके रोग से धान की फसल का बचाव कर सकते हैं और होने वाले नुकसान से बच सकते हैं।

Paddy Crop Diseases
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धान में झोंका रोग की पहचान कैसे करें ?

Paddy Crop Diseases: धान में यह रोग पाइरीकुलेरिया ओराइजी नामक फफूंद से फैलता है। झोंका रोग के लक्षण धान के पौधे के सभी भागों पर दिखाई देते हैं। लेकिन सामान्य रूप से पत्तियां और पुष्प गुच्छ की ग्रीवा इस रोग से बहुत ज्यादा प्रभावित होती है। इस रोग के शुरूआती लक्षण में पौधे की निचली पत्तियों पर धब्बे दिखाई देते हैं। परंतु जब यह धब्बे बड़े हो जाते हैं, तो ये धब्बे नाव यानि आंख की जैसी आकृति के हो जाते हैं। इन धब्बों के किनारे भूरे रंग और मध्य वाला भाग राख जैसे रंग का दिखाई देता है। बाद में ये धब्बे आपस में मिलकर पौधे के अधिकांश सभी हरे भागों को ढक लेते हैं, जिसकी वजह से फसल जली हुई दिखाई देती है।

झोंका (Rice Blast) रोग पर नियंत्रण

अगर धान की फसल में झोंका रोग के संकेत दिखाई पड़ें , तो आप लक्षणों के आधार पर कासु बी 3 प्रतिशत एल. 400-600 मिली / एकड़ अथबा धानुका गोडिवा सुपर (एजोक्सिस्ट्रोबिन 18.2 प्रतिशत और डाइफेनोकोनाजोल 11.4 प्रतिशत एससी) कवकनाशी का इस्तेमाल 200 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव कर रोग को नियंत्रित कर सकते हैं। धानुका गोडिवा सुपर सुरक्षात्मक और उपचारात्मक कार्रवाई दोनों के साथ एक दोहरी-प्रणालीगत, व्यापक-स्पेक्ट्रम कवकनाशी है। यह न केवल रोग नियंत्रण प्रदान करता है बल्कि फसल के स्वास्थ्य, गुणवत्ता और उपज में भी सुधार करता है। धानुका एग्रीटेक ने इस कवकनाशी की कीमत 600 से 650 रुपए रखी हुई। यानी प्रति एकड़ पर इस फंगीसाइड का उपयोग करने पर किसान भाइयों की लगने वाली लागत 650 रुपए तक की होगी।

Paddy Crop Diseases इसके अलावा आपको धान की खेती में रोगरोधी किस्मों का ही चयन कर खेतों की रोपाई करनी चाहिए। बीज का चयन रोगरहित फसल या प्रमाणित बीज केंद्रों से करना चाहिए। विशेषकर बीजों को बोने से पहले ट्राइकोडरमा से उपचारित जरूर करना चाहिए।

Paddy Crop Diseases: झुलसा रोग अथबा जीवाणु झुलसा

Paddy Crop Diseases: झुलसा या जीवाणु झुलसा एक जीवाणु जनित रोग है, जो जेंथोमोनास ओराइजी नामक जीवाणु से फैलता है। इस रोग का प्रकोप पौधों में किसी भी अवस्था में शुरू हो सकता है। इस रोग के प्रारंभिक लक्षण पौधे की पत्तियों पर रोपाई के 25 दिनों बाद दिखाई देने लगते है। यह रोग पौधों में एक साथ न फैलकर धीरे-धीरे चारों तरफ फैलता है। इस रोग के लक्षण पत्तियों, बाली की गर्दन एवं तने की निचली गठानों पर मुख्य रूप से दिखाई देता है। इसमें पत्तिया नोंक अथवा किनारों से सूखना शुरू होकर बीच भाग तक सूखने लगती हैं। इन रोग का प्रकोप जतदा होने पर पूरी फसल सूखे हुए पुआल की तरह दिखाई देने लगती है। इस रोग से प्रभावित पौधे कमजोर हो जाते हैं एवं उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। इस रोग के जीवाणु पौधों की जड़ों, एवं बीज, और पुआल आदि धान के अवषेश आदि के तहत अगले मौसम तक चले जाते हैं।

झुलसा रोग का प्रबंधन कैसे करें?

झुलसा रोग के प्रारंभिक लक्षण नर्सरी से ही दिखाई देने लग जाते हैं, जबकि इस रोग के मुख्य लक्षण खेत में धान की फसल में कल्ले बनने के लास्ट अवस्था में दिखाई देते हैं। इस रोग के शुरूआती लक्षण दिखते ही लस्टर 37.5 प्रतिशत एस.ई. 484 मिली प्रति‍ एकड़ या गौडीवा सुपर 29.6 प्रतिशत एससी 200 से 484 मिली का छिड़काव कर सकते हैं। मौसम साफ होने पर ही दवाओं का छि‍ड़काव करें। लस्टर 484 एमएल प्रति एकड़ लगेगा, जिसकी कीमत 1250 रुपए तक है। वहीं, गौडीवा सुपर की कीमत 650 रुपए है, जो प्रति एकड़ लगने वाली लागत होगी।

इसके अलावा धान की नर्सरी के लिए शुद्ध एवं स्वस्थ बीजों का ही प्रयोग करें। नर्सरी लगाने से पहले 2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और 25 ग्राम कापर आक्सी क्लोराइड के घोल में 12 घंटे तक बीजों को डुबोकर अच्छे से उपचारित करें। इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर खेत में नत्रजन का प्रयोग कम करें या न करें। रोग से प्रभावित खेत का पानी किसी दूसरे खेत में न जाने दें। इसके अलावा रोग प्रभावित खेत में सिंचाई न करें और अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने की व्यवस्था बनाएं। इससे बीमारी को और अधिक फैलने से रोका जा सकता है। इसके अलावा आप फसल में रोग नियंत्रण हेतु बायोवेल का जैविक कवकनाशी बायो ट्रूपर की 500 मिली/प्रति एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं।

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